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मुंशी प्रेमचंद्र जी के कलम से।

 *मुंशी प्रेमचंद जी का एक "सुंदर कविता", जिसके एक-एक शब्द को, बार-बार "पढ़ने" को "मन करता" है-_* आप सभी इसको एक बार अवश्य पढ़े।  ख्वाहिश नहीं, मुझे मशहूर होने की,"         _आप मुझे "पहचानते" हो,_         _बस इतना ही "काफी" है।_😇 _अच्छे ने अच्छा और_ _बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,_         _जिसकी जितनी "जरूरत" थी_         _उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!_ _जिन्दगी का "फलसफा" भी_ _कितना अजीब है,_         _"शामें "कटती नहीं और   "साल" गुजरते चले जा रहे हैं! _एक अजीब सी_ _'दौड़' है ये जिन्दगी,_    -"जीत" जाओ तो कई_  -अपने "पीछे छूट" जाते हैं और_ _हार जाओ तो,_ _अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!_😥 _बैठ जाता हूँ_ _मिट्टी पे अक्सर,_         _मुझे अपनी_         _"औकात" अच्छी लगती है।_ _मैंने समंदर से_ _"सीखा "है जीने का तरीका,_         _चुपचाप से "बहना "और_         _अपनी "मौज" में रहना।_ _ऐसा नहीं कि मु...